लोग भूल गये हैं sentence in Hindi
pronunciation: [ loga bhul gay hain ]
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- 1984-रघुवीर सहाय / लोग भूल गये हैं (काव्य)
- लोग भूल गये हैं-अनन्तर, जनसत्ता, 8 अप्रैल 2007
- लोग भूल गये हैं कि राजनीति का भी कोई धर्म हो सकता है।
- लोग भूल गये हैं, आत्महत्या के विरूद्ध, हंसो हंसो जल्दी हंसो, सीढियों पर धूप में आदि
- सच मे मनुहार का अर्थ ही शायद लोग भूल गये हैं अब तो ज़ुबान से तीर ही निकलते है।
- सच मे मनुहार का अर्थ ही शायद लोग भूल गये हैं अब तो ज़ुबान से तीर ही निकलते है।
- अभी दूसरी फिल्म का परिणाम तो आना है पर पहले वाली फिल्म का नाम तक लोग भूल गये हैं ।
- लोग भूल गये हैं कि दारूबाज कभी नहीं उबरता, यह भिखमंगा तो दूजे और कई नशों की गिरफ्फ में है।
- लोग भूल गये हैं, भारत में भी आजादी के बाद नेताओं को तराशने-गढ़ने का ऐसा ही काम शुरू हुआ था.
- ये लोग भूल गये हैं:-एक ही अनुभव हुआ है आदमी की जात से, जिन्दगी काटे नही कटती महज जज्बात से।
- यह लोग भूल गये हैं कि मध्यम वर्ग ही अपने धार्मिक तथा सामाजिक संगठन तथा विचाराधारा का संवाहक है जो अब उनसे निराश हो गया है।
- यह लोग भूल गये हैं कि मध्यम वर्ग ही अपने धार्मिक तथा सामाजिक संगठन तथा विचाराधारा का संवाहक है जो अब उनसे निराश हो गया है।
- चूंकि वाममोर्चे ने राज्य में साम्प्रदायिक सद्भाव बनाये रखा है इसलिए शायद लोग भूल गये हैं कि वास्तव में बंगाल कितना संवेदनशील राज्य रहा है और हो सकता है।
- मज़हब नहीं सि खाता आपस में बैर रखना, हमारे बुजुर्गों की इस सि खावनी को मतलबपरस् त लोग भूल गये हैं और सि यासतदारों का इसमें सबसे ज् यादा दोष है।
- इज्जत और दिल के चैन का मोल लोग भूल गये हैं ढेर सारी दौलत एकत्रित कर प्रतिष्ठा का भ्रम पाले अपने पांव तले दूसरे इंसान को कुचलने की चाहत हर इंसान में जगी है।
- इज्जत और दिल के चैन का मोल लोग भूल गये हैं ढेर सारी दौलत एकत्रित कर प्रतिष्ठा का भ्रम पाले अपने पांव तले दूसरे इंसान को कुचलने की चाहत हर इंसान में जगी है।
- रघुवीर सहाय ने तकरीबन तीन दशक पहले एक कविता “ लोग भूल गये हैं ” में चिंता व्यक्त की थी-जब अत्याचारी मुस्कराता है, लोग उसके अत्याचार भूल जाते हैं ” ।
- 0 9 दिसंबर 1929, निधन: 30 दिसंबर 1990, जन्म स्थान लखनऊ, प्रमुख कृतियाँ दूसरा सप्तक, सीढियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो, हँसो, जल्दी हँसो, लोग भूल गये हैं, कुछ पते कुछ चठ्ठियाँ, एक समय था कविता संग्रह लोग भूल गये हैं के लिये 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार।
- 0 9 दिसंबर 1929, निधन: 30 दिसंबर 1990, जन्म स्थान लखनऊ, प्रमुख कृतियाँ दूसरा सप्तक, सीढियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो, हँसो, जल्दी हँसो, लोग भूल गये हैं, कुछ पते कुछ चठ्ठियाँ, एक समय था कविता संग्रह लोग भूल गये हैं के लिये 1984 में साहित्य अकादमी पुरस्कार।
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